‘मेरे आफिस आओ।’ प्रिंसिपल ने कहा।
मैं पीछे-पीछे चल दिया। अबतक गाल काफी लाल हो चुका था। प्रिंसिपल ने मुझे खरी-खरी सुनाई। कर क्या सकता था, चुपचाप सुनता रहा। घर में माता-पिता की डांट, स्कूल में भी डांट।
विनय ने पूछा,‘क्या कहा प्रिंसिपल ने?’
‘मम्मी-पापा को बुलाकर लाना होगा।’ मैं बोला।
‘फिर तो समस्या हो गई।’
‘घर में पता लगेगा, खैर नहीं आज मेरी।’
‘मैं तेरे घर जाकर अंकल-आंटी को समझाने की कोशिश करुं।’
‘नहीं रहने दे। मैं खुद संभाल लूंगा।’
रास्ते भर मैं यही सोचता रहा कि कल मां को बहुत गुस्सा आ रहा था। पिताजी भी कम नाराज नहीं थे। लगता है आज खाने के भी लाले पड़े जाएं। ऊपर से पिताजी की पिटाई का डर बराबर सता रहा था। चिंता ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था। बस में नेत्रा मुझसे पूछती रही,‘तुम घबराये हुए क्यों लग रहे हो भईया?’ उसने मेरा गाल देखा जो हल्का सूजा था। मैंने बहाना कर दिया कि खेलते हुए गिर गया था। मगर घबराने की वजह नहीं बताई। मैं चाहता नहीं था कि नेत्रा को मालूम पड़े क्योंकि वह घर तक हजार सवाल पूछ लेगी। दो दिन बाद गर्मी की छुटिट्यां होने जा रही थीं। जब मैं छुटिट्यों का विचार अपने दिमाग में लाता तो प्रसन्न हो जाता। लेकिन प्रिंसिपल की बात बार-बार मुझे चिंतित करती जा रही थी। दो चीजें एक साथ हो रही थीं- एक मैं सोच कर मुस्करा रहा था और दूसरा, मैं सोचकर इतना ही दुखी हो रहा था।
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शाम को नेत्रा सहेलियों संग खेलने चली गयी। पिताजी अभी आये नहीं थे। मां सब्जी काट रही थीं।
मैंने कहा,‘स्कूल में आपको और पिताजी को बुलाया है।’
मैंने कह तो दिया, लेकिन मन में अजीब सी उथुलपुथल हो रही थी कि कहीं मां को क्रोध न आ जाए। मां ने मेरी तरफ देखा और बोलीं,‘क्यों, क्या हुआ?’
मैंने पूरी कहानी एक सांस में बता दी।
‘तू नहीं सुधरेगा।’ मां गुस्से में बोलीं।
‘इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। वो अचानक प्रिंसिपल आ गयीं। मैं क्या करता?’ मैंने सफाई देनी चाही।
मां पर कोई असर नहीं होता दिख रहा था। वह तमतमाई हुई थी।
‘मुझे लगता है तुझे स्कूल में पढ़ना ही बंद कर देना चाहिए। लगातार दो दिन से स्कूल में सजा मिल रही है।’ मां ने कहा।
‘आने दे तेरे पापा को। आज तेरा फैसला करेंगे।’ मां ने कहा।
‘पर मैं तो......।’ मैं आगे बोला।
मां ने सब्जी काट ली थी। तभी नेत्रा भी आ गयी। उसने मुझे मां की डांट खाते सुन लिया था।
वह बोली,‘भईया आज बस में परेशान था। मैंने पूछना चाहा तो इतना ही बताया कि खेलते हुए गिर गया था। गाल पर मामूली सूजन थी।’
‘गाल पर सूजन।’ मां को हैरानी हुई। ‘लगता है बुरी तरह पिटा है नालायक।’ मां का पारा बढ़ता जा रहा था।
तभी नेत्रा बोली,‘मां, पानी लाऊं।’
‘रहने दे। इसने मेरा जीना मुहाल कर दिया है।’ लंबी सांस लेते हुए मां बोली। ‘तू मन लगाकर पढ़ रही है और यह निकम्मा....बस क्या कहूं.....कुछ नहीं।’
‘अब बैठा हुआ यहां क्या कर रहा है? जाकर पढ़ ले।’ मां ने कहा।
मैंने प्रण किया कि पढ़ाई में मेहनत करुंगा। नेत्रा की तरह स्कूल से आकर पहले अपना होमवर्क समाप्त करुंगा। सभी विषयों का टाइम-टेबल बनाकर पढ़ा करुंगा। इन छुटिट्यों में आधा कोर्स निबटा कर ही चैन आयेगा मुझे। विचारों की पुड़िया खुल चुकी थी। पर मैंने ऐसा पहले भी अनेकों बार सोचा है। मेरी योजनायें अमल में आने से पूर्व ही धराशायी हो गयीं। यह मैं अच्छी तरह जानता था। पर इस बार मैंने निश्चय किया कि मैं पीछे नहीं हटने वाला।
पिताजी थके हुए घर आये। उनके चेहरे पर गुस्सा था। मेरी हालत पतली हो गई। मुझे काटो तो खून नहीं। मां ने पिताजी को कदम रखते ही कहानी बतानी शुरु कर दी। फिर क्या था, पिताजी ने मुझे कमरे में बुलाया। मैं रात भर करवट बदलता रहा। शरीर दुख रहा था। टांगों में उतना दर्द नहीं था क्योंकि दो बार ही वहां छड़ी घूमी थी। नेत्रा ने मेरी पीठ पर ‘बाम’ मसला था। वह बातें कैसी भी करती हो, पर है मेरी सबसे प्यारी बहन। हम प्रेम के बल पर ही एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। रिश्ते वाकई मायने रखते हैं और खून के रिश्ते ऐसे ही होते हैं।
छुटिट्यां होने में अब एक दिन शेष था। पिताजी ने प्रिंसिपल से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि आगे से यदि मेरी कोई हरकत आती है तो मुझे बिना झिझक के स्कूल से निकाल दें। मुझे पिताजी से यह उम्मीद नहीं थी। शायद उनके कहने की वजह यह थी कि उन्हें भी मुझसे कोई उम्मीद नहीं थी। दोनों तरफ उम्मीदों का खेल था।
मैडम मौली ने कहा,‘छुट्टी में मौज-मस्ती होगी, मगर पढ़ाई को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। रोज गणित के सवाल करने हैं। इससे अभ्यास बना रहेगा।’
आखिरी दिन मैं काफी प्रसन्न नजर आ रहा था। मैंने कुछ दिनों से चिंतित मन को ठीक खुद ही कर लिया था।
मैडम मौली ने एक बार कहा था,‘खराब बातों को याद नहीं रखना चाहिए। उन्हें भुलाना ही बेहतर है। अच्छी बातें जिंदगी भर भी याद रह जाएं तो कोई बुराई नहीं।’ मैंने उन पक्तियों को दिमाग में बैठा रखा था।
विनय स्कूल के गेट के बाहर खड़ा मेरा इंतजार कर रहा था। वह बोला,‘तुमने बड़ी देर लगा दी। कहां रह गये थे?’
वह चौंककर बोला,‘अरे! यह क्या? तुम्हारे चेहरे को क्या हुआ? फिर किसी टीचर ने तुम पर हाथ उठाया क्या?’
‘कुछ मत पूछ।’ मैं दुखी मन से बोला।
‘तेरी नाक से खून बह रहा है। ला साफ कर दूं।’ विनय ने रुमाल निकालते हुए कहा।
‘मैं पानी पी रहा था कि पीछे से किसी ने जोर का धक्का दिया। मेरा मुंह पानी की टोटी पर जाकर लगा।’ मैंने बताया। ‘लेकिन घर जाकर मां-पिताजी का फिर लेक्चर सुनने को मिलेगा।’ मेरी चिंता बढ़ गयी।
‘लगता है इस बार पूरी छुटि~टयां बेकार जाने वाली हैं।’ मैंने कहा।
‘मैं शिमला जा रहा हूं।’ विनय बोला।
तभी पीछे से विमल ने मेरे कंधे पर हाथ मारकर कहा,‘छुटिट्यों में किधर घूमने का इरादा है?’
‘’शायद इस बार नहीं।’ मैंने कहा।
विमल ने मेरी नाक देखकर कहा,‘यह तुम्हारी नाक लाल हो गयी है। किसी टीचर की बुरी नजर लग गयी क्या?’
मैं चुप रहा। कंधे पर बस्ता टांग बस में चढ़ गया। मैं नाक पर हाथ लगाकर खिड़की की तरफ बैठा था। तभी नेत्रा ने कहा,‘तुम्हें काफी होमवर्क मिला होगा। मुझे तीन प्रोजेक्ट दिये हैं। साइंस में नदियों के प्रदूषण के बारे में प्रोजेक्ट तैयार करना है। तुम मेरी इस बार मदद कर देना। हरबेरियम फाइल के लिए पत्ते जमा खुद कर लूंगी।’
नेत्रा नन्हीं सी जान और इतने काम। हद है स्कूल वालों से भी है। कम से कम छुटिट्यां तो चैन से मनाने दें।
‘नेत्रा, तुम्हें लगता नहीं कि तीसरी क्लास के हिसाब से इतने प्रोजेक्ट कुछ ज्यादा हैं।’ मैंने कहा। तबतक मैंने खिड़की की तरफ मुंह किया हुआ था।
‘लेकिन यह मुझे लंबी छुटिट्यों के लिए कम लगता है। मैं फिर बोर हो जाऊंगी’ नेत्रा गंभीर होकर बोली।
उसने आगे कहा,‘तुम्हारे क्या प्रोजेक्ट हैं, बताओगे।’
आखिर कब तक मुंह छिपाने की कोशिश करता। गर्दन में भी दर्द शुरु हो गया था। नेत्रा की ओर देखकर कहा,‘घर जाकर बात करना।’
‘पर भईया तुम्हारी नाक कितनी लाल हो रही है।’ वह बोली हैरानी से।
‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही मामूली चोट है।’ मैंने कहा।
वह नीचे मुंह कर मुस्करा रही थी।
-harminder singh
-अगले अंक में पढ़िये- खराब समय
bachapan ,antheen yaadon ka silsila,kaithe(kaveet)ki khatti-meethi chatani jaisi yaade.sunder rachana.
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