जन्म हुआ शिशु का
जीवन जीने को,
मां का प्रेम दुलार
वक्ष दुग्ध पीने को,
अभिमान हो रहा बड़ा,
पर है यह शाप,
जितना बढ़ता,
पाता आयु अल्प अपने आप,
चिंतित रह शिशु प्रति,
प्रेम बढ़ता,
पर विधि की चलनी चली,
है वह कर्ता,
विदा किया लोक से,
बिना बताये उसे,
चला अनंत ओर,
हरा प्रभु ने जिसे,
लोग कहें,‘रोगी था’
मां उन्हें दुत्कार करे,
‘अभी जीता तू, उठ!
क्यों बहाने चार करे’,
अपूर्ण हुई आशा,
व्यथित वह नारी थी,
पुत्र-मोहिनी,
पुत्र-विछोह की वह मारी थी,
पत्थर गिरे, मस्तक हिला,
दयनीय विलाप वह,
अश्रु बहें चक्षुओं से,
पुत्र संताप वह,
प्रेम, अहंकार धूल बना,
चिता में भी जला,
तत्व पंच लीन,
दी राख जल से नहला,
‘कभी जन्म हुआ था,
मेरे शिशु का जीने को,
मेरा प्रेम दुलार,
वक्ष दुग्ध पीने को,
नहीं रहा वह लाल,
माटी बन, गया अभिमान,
जीऊं कैसे? हे ईश,
ले गया मेरी संतान,
हरना था जब,
क्यों किया उसे उत्पन्न,
नहीं करना था,
क्यों किया मुझे संपन्न’,
शक्ति सब देख रही,
मूकता का विधान है,
नित्य का आना-जाना,
चमत्कार श्री महान है।
-harminder singh
Sunday, June 21, 2009
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
काफी उम्दा सोच का प्रतीक है आपका ये ब्लॉग..
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