रेलगाड़ी के डिब्बे में कई महिलाएं सफर कर रही थीं। मेरे समीप एक अधेड़ महिला बैठी थी। उसकी दो बेटियां जिनकी उम्र 10 से 15 के बीच होगी अपनी मां से जिद कर रही थीं कि उन्हें जादुई अंगूठी चाहिए। मां ने पहले मना किया फिर दस रुपये के दो नोट निकाल कर दो अंगूठियां ले लीं। कुछ समय बाद उसने खुद भी एक अंगूठी खरीद अंगुली में पहन ली। उसके सामने दो बुजुर्ग महिलाएं बैठी थीं। उन्होंने भी देखादेखी अंगूठियां खरीद लीं। अंगूठी बेचने वाला व्यक्ति यह कह रहा था कि कोई ऐसी-वैसी अंगूठी नहीं है। काले घोड़े की नाल से बनी है। इससे गृह क्लेश, दुख और परेशानी कुछ समय में ही दूर हो जायेगी।
फिर खिड़की के बराबर में बैठी दो महिलाएं ने आपस में विचार-विमर्श किया। मुझे हैरानी हुई कि उन्होंने भी अपने लिए अंगूठियां लीं। वे पढ़ी-लिखी लग रही थीं।
अंधविश्वास को सबसे अधिक महिलाएं मानती हैं। यही कारण है कि वे अपने परिवार की शांति के लिए विभिन्न तरह के क्रियाकलापों में व्यस्त रहती हैं। जहां भी उन्हें लगता है कि यहां से कुछ उम्मीद है, वे वहीं मत्था टेक आयेंगी या प्रसाद चढ़ायेंगी।
यह सच है कि महिलाएं आसानी से भावनाओं में बह जाती हैं। उनकी मानसिकता है कि वे देखा-देखी बहुत कुछ कर जाती हैं। उनमें दूसरी महिला की बराबरी करने की आदत होती है या उससे आगे निकलने की अजीब होड़। अधिकतर महिलायें दूसरी महिला से इर्ष्या का भाव रखती हैं- ऐसा कई शोध खुलासा कर चुके हैं। महिलाओं को सबसे अधिक ठगा जाता है। इसका मतलब है कि वे कई मायनों में भोली होती हैं।
-harminder singh
Monday, June 8, 2009
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
जिन के जीवन में पग पग पर बुरा हो रहा हो, वहाँ यह जानते हुए भी कि इस से कुछ नहीं होगा एक अंधविश्वास पर विश्वास कर कुछ देर के लिए सुखद अहसास कर लेना भी उपलब्धि बन जाता है। इसी का लाभ लोग उठा रहे हैं। इस काम में पुरुष भी कम नहीं। अशोक जड़ेजा भी तो यहीं पैदा होते हैं।
ReplyDeleteइन्ही महिलाओं और बच्चों पर ही तो सारा व्यापर चल रहा है..इसी लिए विज्ञापन भी महिलाओं और बच्चों पर ही केन्द्रित होते है...
ReplyDeletekabhie kabhie lagtaa hean ki har koi mahila ko badlana chahtaa haen lekin jaese hi koi mahila badal jaatee haen wo "asaamajik" tatv ban jaatee haen
ReplyDeleteBhaukta hi kabhi-kabhi kamjori ban jati hai. Accha pryas hai aapka.
ReplyDeleteकाफी हद तक सही लिखा है।लेकिन इस से एक बात तो साबित होती है कि महिलाओ को परिवारिक सुख शांती की कितनी चिन्ता रहती है।
ReplyDeleteमुझे तो लगता है स्त्री पुरुष दोनों मूर्ख बनते रहते हैं,परन्तु अलग अलग के प्रचार, बिक्री आदि के। बेचने वाले सबकी कमजोरियाँ समझते हैं और भुनाते हैं।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
तू मुरख तो मैं ज्ञानी, यह बात तो सारी दुनिया ने है मानी।
ReplyDeleteकहा जाता है कि जब तक इस दुनिया में बेवकूफ जिंदा है अक्लमंद कभी भूखे नहीं मर सकते। अंधविश्वास के कारण ही तो करोड़ों का कारोबार इस देश में चल रहा है। अब इसके शिकार महिला हो या पुरुष क्या फर्क पड़ता है।
lalach sab cheezon ki jad hai
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