-sumit kumar
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वृद्धों का पहला ब्लॉग
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
स्व. मुंशी निर्मल सिंह जी ये वे हैं जिनकी प्रेरणा से हमने यह ब्लॉग तैयार किया है। इनका आशीर्वाद सदा हमारे ऊपर रहे। यह ब्लॉग उन लोगों को समर्पित है जो हमारे अपने हैं, लेकिन अब वे बूढ़े हो चुके हैं। उनका बुढ़ापा जीवन की उस सच्चाई को दर्शा रहा है जो कभी झुठलाई नहीं जा सकती। यह एक प्रयास भर है |
डायरी के पन्ने एक कैदी के जिसने अपनी तमाम जवानी कैदखाने में बिता दी। आज जब वह वृद्ध हो गया तो अपनी डायरी के पन्ने उलट रहा है। वृद्धग्राम कैदी के दर्द भरे पलों की यादों को एक-एक कर आपके सामने प्रस्तुत कर रहा है |
>>पहली पोस्ट ------------ >>क्रोध ------------ >>बदल गया बहुत कुछ ------------ >>इंसान और भगवान ------------ >>अपनेपन की तलाश ------------ >>मन कहता है ------------ >>सूनापन दुनिया है ------------ >>मामा की मौत ------------ >>मामा की चाल ------------ >>जिंदगियों का सौदा ------------ >>सादाब का मामा ------------ >>दर्द बहता है ------------ >>सादाब के अब्बा की मौत ------------ >>बर्दाश्त करने की हद ------------ >>पुलिस की बेरहमी ------------ >>सादाब की कहानी ------------ >>खुशी का मरहम ------------ >>रिश्तों की उलझन ------------ >>जेल का संसार ------------ >>कुछ उम्मीद जगी ------------ >>अब्दुल ------------ >>यकीन मानिए कैदी भी इंसान होते हैं ------------ >>विवशता के सिवा कुछ नहीं ------------ >>जीना पूरा नहीं, मरना अधूरा है ------------ >>कैदी से नींद कुछ कहती है ------------ >>तन्हाई कुछ कहती है ------------ >>हालातों के हाथ मजबूर ------------ >>मुरझाये चेहरों का सूखा हिस्सा ------------ >>जिंदगी कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है ------------ >>स्वयं से लड़ना बहुत मुश्किल है ------------ >>वाकई जीना उतना आसान नहीं ------------ >>अहिस्ता-अहिस्ता जुड़ते हैं भाव |
>>लेख |
बस चाह थी सूखने की ------------------------------------------------------ नीड़ अब अपने नहीं ------------------------------------------------------ एक बूढ़ा नदी से आंख मिलाता है ------------------------------------------------------ आखिरी पलों की कहानी ------------------------------------------------------ उर्मिला के पिता चल बसे ------------------------------------------------------ अधूरी कहानी ------------------------------------------------------ शायद कुछ गुम गया है ------------------------------------------------------ टूटी बिखरी यादें ------------------------------------------------------ क्या अपने इतने सस्ते होते हैं? ------------------------------------------------------ पापा की प्यारी बेटी ------------------------------------------------------ धुंधले पड़ गये हैं शब्द ------------------------------------------------------ बुढ़ापे का मर्म ------------------------------------------------------ खत्म हो रहा हूं मैं ------------------------------------------------------ छली जाती हैं बेटियां ------------------------------------------------------ बुढ़ापे को सब्र कितना है ------------------------------------------------------ मां ऐसी ही होती है ------------------------------------------------------ बुढ़ापा कितना आजाद ------------------------------------------------------ गुरु ऐसे ही होते हैं ------------------------------------------------------ तो किसे अपना मानें? ------------------------------------------------------ मां का दिल ऐसा ही होता है ------------------------------------------------------ महिलाएं नहीं बदलेंगी ------------------------------------------------------ आखिरी पलों की कहानी ------------------------------------------------------ जवानी और बुढ़ापा ------------------------------------------------------ इतना पाकर भी खाली हाथ है ------------------------------------------------------ यादें संजोने की जरुरत ------------------------------------------------------ नैनहू नीर बहै तन खीना ------------------------------------------------------ धारावाहिक और महिलायें ------------------------------------------------------ बुढ़ापे का इश्क ------------------------------------------------------ बस समय का इंतजार है ------------------------------------------------------ बातों की खुशी ------------------------------------------------------ घर बाहर सभी जगह उपेक्षित बुढ़ापा ------------------------------------------------------ वृद्धाश्रम के अभागे |
पता नहीं ये दुनिया किस तरफ को जा रही है....भावनाएं,रिश्ते सब खत्म!!!!!!!!
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ReplyDeleteइंसान की इंसानियत मरती जा रही है .....
ReplyDeletekya in ko kabhi budhapa nahi aayai ga ?
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