बूढ़ी काकी कहती है-‘‘बुढ़ापा तो आना ही है। सच का सामना करने से भय कैसा? क्यों हम घबराते हैं आने वाले समय से जो सच्चाई है जिसे झुठलाना नामुमकिन है।’’.

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Monday, January 19, 2009

बुढ़ापा भी सुन्दर होता है

मैंने काकी के सफेद बालों की ओर देखा। काकी ने कहा कि काफी समय से ये ऐसे ही हैं। उनकी सफेदी उम्र बखान कर रहा थी। काकी का चेहरा भी उनके साथ अनोखा नहीं लग रहा था। असल में बुढ़ापा भी सुन्दर लगता है, फर्क सिर्फ नजरिये का होता है। इसपर काकी कहती है,‘यह हम सुनते आये हैं कि सुन्दरता देखने वालों की आंखों में होती है। .......और जिसके आंखें न हों, वह.....।’

इतना कहकर काकी रुक गई। आगे बोली,‘वह स्पर्श कर अहसास करते हैं। वास्तव में स्पर्श एक अहसास ही है, अनुभव है। आंखों वाले भी स्पर्श का मतलब जानते हैं। प्रकृति सुन्दर है, लोग भी और भगवान की बनाई प्रत्येक वस्तु की छटा अपनी है। नये और पुराने का संगम है प्रकृति। इस ओर कुछ छिपा है तो उस पार का नजारा भी कम विस्मयकारी नहीं। यही प्रकृति का अद्भुत खेल है। युगों से यही होता आया है। हर बार लोगों ने संसार को अपने चश्मे से देखा है तो सुन्दरता का कोई रुप किसे भाया तो कोई रुप किसे। अपनी-अपनी समझ ने जिसे जैसा दिखाया वैसा ही उसे लगा।’

‘बुढ़ापा सुन्दर भी होता है। ऐसा मेरी नजर कहती है। मुझे मालूम है कि सबकी सोच एक-सी नहीं होती। इन जर्जर हाथों में कोमलता अब कहां? फिर भी सुन्दर हैं यह हाथ। चेहरे पर रौनक की बात छोड़ो, झुर्रियां चहलकदमी क्या, स्थायी तौर पर निवास करने लगी हैं। इतना सब बदल गया है, फिर भी खुद को किसी परी से कम नहीं समझती।’
इतना कहकर काकी का चेहरा मुस्कराहट से भर जाता है। वह अपने बिना दांतों वाले मुंह के दर्शन करा देती है। काकी को हंसता हुआ देखकर मुझे पता चला कि बुढ़ापा खुश है, क्योंकि अभी इंसान जीवित है। हंसती हुई हर चीज अच्छी लगती है, चाहें उसमें कितना पुरानापन क्यों न आ गया हो। उमंग को जीवित रखती है हंसी और एक पल की हंसी कई गुना सुकून पहंचाती है। हम कितनी आसानी से कह देते हैं कि बूढ़ों को हंसना नहीं आता। यह उम्र बीतने का दौर होता है, अंतिम उड़ान और विदाई का वक्त होता है। इसमें मामूली मुस्कराहट भी मायने रखती है। हंसी के साथ जिये हैं, तो अंतिम समय ठहाका लगाने में क्या बुराई है? काकी जिंदादिली की मिसाल थी। पेड़ जर्जर होने पर वीरान लगता है क्योंकि उसकी हरियाली छिन चुकी होती है। इंसान के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है।

-harminder singh

3 comments:

  1. हरमिंदर ,
    तुमने बहुत अच्छी किया है ये ब्लॉग bana कर ....सच तो ये है की बुडापा ही sunder है .....बुजुर्गों के लिए आप के बाव अच्छे लगे

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  2. बहुत सुन्दर और प्रेरणाप्रद है धन्यवाद्

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  3. चलो हम लोगों के बे वक़्त फिर रहे हैं. हम आपके आभारी हैं हमें यह अहसास दिलाने का. सुंदर पोस्ट. पुनः आभार.

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>>पल दो पल का जीवन.............>क्यों हम जीवन खो देते हैं?

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>>चाय में मक्खी............................>>भविष्य वाला साधु
>>वापस स्कूल में...........................>>सपने का भय
हमारे प्रेरणास्रोत हमारे बुजुर्ग

...ऐसे थे मुंशी जी

..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का

...अपने अंतिम दिनों में
तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?

सम्मान के हकदार

नेत्र सिंह

रामकली जी

दादी गौरजां

कल्याणी-एक प्रेम कहानी मेरा स्कूल बुढ़ापा

....भाग-1....भाग-2
सीधी बात नो बकवास

बहुत कुछ बदल गया, पर बदले नहीं लोग

गुरु ऐसे ही होते हैं
युवती से शादी का हश्र भुगत रहा है वृद्ध

बुढ़ापे के आंसू

बूढ़ा शरीर हुआ है इंसान नहीं

बुढ़ापा छुटकारा चाहता है

खोई यादों को वापिस लाने की चाह

बातों बातों में रिश्ते-नाते बुढ़ापा
ऐसा क्या है जीवन में?

अनदेखा अनजाना सा

कुछ समय का अनुभव

ठिठुरन और मैं

राज पिछले जन्म का
क्योंकि तुम खुश हो तो मैं खुश हूं

कहानी की शुरुआत फिर होगी

करीब हैं, पर दूर हैं

पापा की प्यारी बेटी

छली जाती हैं बेटियां

मां ऐसी ही होती है
एक उम्मीद के साथ जीता हूं मैं

कुछ नमी अभी बाकी है

अपनेपन की तलाश

टूटी बिखरी यादें

आखिरी पलों की कहानी

बुढ़ापे का मर्म



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>>मैडम मौली
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जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया

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गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं
दो बूढ़ों का मिलन

दोनों बूढ़े हैं, फिर भी हौंसला रखते हैं आगे जीने का। वे एक सुर में कहते हैं,‘‘अगला लोक किसने देखा। जीना तो यहां ही है।’’
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इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
प्रताप महेन्द्र सिंह कहते हैं- ''लाचारी और विवशता के सिवाय कुछ नहीं है बुढ़ापा. यह ऐसा पड़ाव है जब मर्जी अपनी नहीं रहती। रुठ कर मनाने वाला कोई नहीं।'' एक पुरानी फिल्म के गीत के शब्द वे कहते हैं-‘‘इक दिन बिक जायेगा, माटी के मोल, जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल।’’

...............कहानी
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किशना- एक बूढ़े की कहानी
(भाग-1)..................(भाग-2)
ये भी कोई जिंदगी है
बृजघाट के घाट पर अनेकों साधु-संतों के आश्रम हैं। यहां बहुत से बूढ़े आपको किसी आस में बैठे मिल जायेंगे। इनकी आंखें थकी हुयी हैं, येजर्जर काया वाले हैं, किसी की प्रेरणा नहीं बने, हां, इन्हें लोग दया दृष्टि से जरुर देखते हैं

अपने याद आते हैं
राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से

कविता.../....हरमिन्दर सिंह .
कभी मोम पिघला था यहां
इस बहाने खुद से बातें हो जायेंगी
विदाई बड़ी दुखदायी
आखिर कितना भीगता हूं मैं
प्यास अभी मिटी नहीं
पता नहीं क्यों?
बेहाल बागवां

यही बुढापा है, सच्चाई है
विदा, अलविदा!
अब कहां गई?
अंतिम पल
खत्म जहां किनारा है
तन्हाई के प्याले
ये मेरी दुनिया है
वहां भी अकेली है वह
जन्म हुआ शिशु का
गरमी
जीवन और मरण
कोई दुखी न हो
यूं ही चलते-चलते
मैं दीवाली देखना चाहता हूं
दीवाली पर दिवाला
जा रहा हूं मैं, वापस न आने के लिए
बुढ़ापा सामने खड़ा पूछ रहा
मगर चुप हूं मैं
क्षोभ
बारिश को करीब से देखा मैंने
बुढ़ापा सामने खड़ा है, अपना लो
मन की पीड़ा
काली छाया

तब जन्म गीत का होता है -रेखा सिंह
भगवान मेरे, क्या जमाना आया है -शुभांगी
वृद्ध इंसान हूं मैं-शुभांगी
मां ऐसी ही होती है -ज्ञानेंद्र सिंह
खामोशी-लाचारी-ज्ञानेंद्र सिंह
उम्र के पड़ाव -बलराम गुर्जर
मैं गरीबों को सलाम करता हूं -फ़ुरखान शाह
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कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
-Ravish kumar
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