मां-बाप ने तमाम जीवन जिद्दीपने को सहा, बूढ़े हुये तो अकेले पड़ गये। अब बचपन का लाड-प्यार किस मोल का रहा। तब बेटी ने अपने मां-बाप को सहारा दिया। वह सुख था तो अंतिम दिनों का और अधिक भी नहीं, लेकिन यह बताने के लिये काफी है कि बेटे बेटी की तरह नहीं हो सकते। लाडली बेटी है तो वह भी जिद्दी होगी, लेकिन सहारा भी होगी |
लाडले बड़े हो रहे हैं। मांओं के प्यारे कहलाते हैं ये। सुना है, पिता भी कम इन्हें नहीं चाहते। तब तो ऐसों की मौज है। ना मां का डर, ना बाप का। कुछ निठल्लापन भी ‘एक्सट्रा फैट’ की तरह आ गया है। वाह हो लाडली औलादों की। वैसे प्यार इन्हें भरपूर मिलता है, इसमें कोई शक नहीं।
लाडला बेटा है तो क्या कहने। सारी फरमाइशें फौरन पूरीं।
‘बेटे के लिये क्या लायें?’ पापा कहते हैं।
बेटा मुंह पिचकाकर कहता है-‘आईसक्रीम।’
पिता-‘कौन सी वाली।’
पिता कई फ्लेवर बताता चला जाता है।
बेटा कहता है-‘हां, यही वाली।’
पिता का झटपट बाजार का रुख, बेटे के लिये आईसक्रीम हाजिर।
बाप को पता नहीं कि बेटा अभी फरमाइशों की शुरुआत कर रहा है। बाप इससे भी अंजान है कि बेटे की गठरी बड़ी मोटी है, फरमाइशें ही फरमाइशें हैं, और न सुनने का वह आदी नहीं।
उम्र बढ़ती है, नखरे भी। ठीक है, मांगे पूरी की जा रही हैं। जिद्दीपने की जड़ें गहरी हो रही हैं। उनकी सिंचाई ढंग से जो की जा रही है। बागवां बेहाल होकर भी भले चंगे हैं। यह स्नेह है, औलाद का मोह, लेकिन इसे हम पुत्र का स्नेह कहेंगे।
पुत्र इकलौता है तो सोने पर सुहागा। वह अल्हड़ है, मस्त है। घर सिर पर उठाकर चलने की उसकी आदत परिवार में बुरी नहीं मानी जाती। वह मनमानी वाला है, गुस्सैल भी। खाता कम, बिखेरता ज्यादा है। शांत रहने के बजाय उद्दंड हो चला है। जबकि बेटी एक कोने में बैठी है। वह उसे तंग करने में कोई कसर छोड़ेगा नहीं। मां-बाप इस पर ध्यान कम देंगे। बेटा पहले, बेटी बाद में।
मां-बाप ने तमाम जीवन जिद्दीपने को सहा, बूढ़े हुये तो अकेले पड़ गये। अब बचपन का लाड-प्यार किस मोल का रहा। तब बेटी ने अपने मां-बाप को सहारा दिया। वह सुख था तो अंतिम दिनों का और अधिक भी नहीं, लेकिन यह बताने के लिये काफी है कि बेटे बेटी की तरह नहीं हो सकते। लाडली बेटी है तो वह भी जिद्दी होगी, लेकिन सहारा भी होगी।
-harminder singh
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