दुनिया को करीब से देखा है इन्होंने। दुनिया बोलती आंखों का सितारा है। मोह भी यहीं है और माया भी। बच्चे बड़े हो रहे हैं और नौजवान बूढ़े। यह तो होता ही आया है कि बीज उगता है तो दूसरा पेड़ बन कर गिर भी जाता है। उम्र का सारा खेल यह है। इसका कोई शातिर खिलाड़ी भी तो नहीं।
अपनों का मोह और उनकी करीबी बुजुर्गों को उनसे जोड़े रखती है। पर क्या वे जर्जर काया वालों से मोह करते हैं? शायद इसका जबाव न में अधिक मिले।
जब तक जवानी का दौर रहता है शरीर कुलांचे मारता है। सुबह का सूरज उगता है, दोपहर में पूरे वेग पर होता है और शाम को अस्त हो जाता है।
अस्त हो रहा है आज सूरज। किरणों की संख्या अनगिनत आज भी है, लेकिन उन्हें गिनने वाला कोई नहीं। यह कहना जरुरी हो रहा है कि बात करने वाले दूरी बना रहे हैं। ‘‘बूढ़ों वाली गंध आ रही है’’ कहने वालों की कोई कमी नहीं।
जोड़ गांठ कर रखी पूंजी और जमीन बंट गयी। ये ही होता है। होता बहुत कुछ है, बताने वालों की कमी है। अनेकों वृद्ध अपनों के शोषण का शिकार हो रहे हैं, बोलते नहीं हैं, बस सहते हैं। यही उनके आखिरी पलों की कहानी है।
जवानी बात करती है, कूदती फांदती है, इतराती है, लेकिन इस समय सब बेकार है। चुपचाप रहना ही बेहतर है।
-harminder singh
Thursday, July 3, 2008
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
Bhaut achha likhtein hain.
ReplyDeleteAap ki post padhkar budhape ki tasveer sakshat ho rahi hai.
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