परिवारों में बूढ़ों की दुदर्शा किसी से छिपी नहीं है। उन्हें किस तरह और क्यों सताया जाता है, दुख पहुंचाया जाता है, और किस तरह वे जीते हैं। यह चर्चा का विषय है। उनके जीवन में रस समाप्त हो जाता है और वे चुपचाप रहते हैं। नीरस हैं, दुखी हैं, सताये हैं, फिर भी एक आस के साथ जीते हैं बूढ़े। एक आस जीवन की और उस दिन की जब वे यहां नहीं होंगे। कहीं भी होंगे लेकिन वे होंगे।
गरीबदास का दर्द गुरीबदास हंसते नहीं हैं, रोते अधिक हैं। वे उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं। उनका बेटा उनके साथ अभद्र व्यवहार करता है वे रोते हुये कहते हैं,‘‘इससे तो बेऔलाद ही भला था।’’ |
आइये एक ऐसे वृद्ध से मिलते हैं जिन्हें आज तक सबने सम्मान दिया। उन्होंने स्वीकार किया। उनके इकलौते पुत्र ने उन्हें ऐसा समय दिखाया कि वे आज भी रोते हैं और कहते हैं,‘‘इससे तो बेऔलाद भला था।’’
फाजलपुर के गरीब दास को उनके आसपास पास के लोग भली भांति जानते हैं। वे एक मामूली इंसान हैं, लेकिन जितने लोगों के बीच वे रहते हैं उनके बीच उनका सम्मान है। सम्मान इतना कि वे लोग उन्हें बहुत बड़ा मानते हैं। उनके बेटे ने उनके लिये कुछ नहीं किया। वे आंखों में आंसू लिये रहते हैं।
हाल के कुछ दिनों में उनके साथ ऐसा हुआ है कि वे अब अपने आप से लड़ रहे हैं, अपने बेटे से कुछ कह नहीं सकते। इतना दुख है कि किसी से बताते नहीं और पहले ही आंखें गीली हो जाती हैं। अपनी संगिनी और पोते के साथ कुछ पल गुजार कर धन्य हो जाते हैं। उनकी मुस्कान मंद पड़ गयी है।
नाम के गरीबदास हैं और पुत्र की तरफ से भी गरीब। पिछले दिनों उनके बेटे ने उनके साथ मारपीट की और उन्हें बुरा-भला कहा। यह सब अखबार में भी छपा।
उनका बेटा शराबी है और नशे के लिये आयेदिन उनसे झगड़ा करता रहता है। यह दस्तूर पहले से चला आ रहा है। उनकी पत्नि उन्हीं की तरह कमजोर हो चली है। बहु भी पिछले साल गुजर गयी। आग से जली थी या जलायी गयी थी वह, पता नहीं चल सका। उसकी मौत संदेहास्पद थी। बेटे ने जमीन बेच दी। एक टेंट हाउस गरीबदास जी ने चला रखा है, उसपर भी यदि बेटा बैठता है तो वह दिनभर की कमाई को अपने नशे में उड़ा देता है।
औलाद ही है जो बुढ़ापे के लिये लाठी होती है और यदि चाहे तो बुढ़ापा तबाह कर देती है। गुरीबदास हंसते नहीं हैं, रोते अधिक हैं। वे उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं।
बुढ़ापे में मां-बाप को सहारा ही तो चाहिये। एक ऐसा सहारा जो उन्हें थोड़ा आराम दे सके। ये आराम है तो अल्प समय का लेकिन औलाद का सुख कुछ और ही होता है।
हरमिन्दर सिंह द्वारा
हरमिन्दर भाई, पता नही यही प्यार हे बुढे मां वाप बेटो ओर बहुओ से बेइज्जत हो कर भी, उन्हे नही छोडते,फ़िर भी उन्ही के गम मे घुटते हे,बच्चो पर थोडी सी भी मुसिबत आती हे तो तडप उठाते हे,मे कई बार सोचता हू ऎसा कयो लेकिन इस क्यो का जबाब..
ReplyDeleteपढ़ कर दुःख हुआ. अभागे हैं वह जो माँ-बाप की सेवा नहीं कर पाते. कारण चाहे कोई भी हो, माँ-बाप का अपमान ईश्वर का अपमान है. इस की सजा मिलेगी, कोई छूट नहीं है. ईश्वर से यही प्रार्थना है की गरीबदास जी का बेटा समझ जाए और माँ-बाप की सेवा करके अपना पाप कुछ कम करले.
ReplyDeleteकितने घरो को इसी कारण बरबाद होते देखा है ,यही सब सोचकर आजकल सोचता हूँ की एक पॉलिसी केवल बुदापे के लिए अलग से रख लूँ.
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