यह प्रसन्नता की बात है कि वृद्धों का पहला ब्लाग का प्रारंभ कर दिया गया है। हमने बहुत कुछ नजदीक से देखा हैऔर एहसास किया है कि एक दुनिया हमारे पास बसती है जिसमें बूढ़े हैं। ये ब्लाग समर्पित है ऐसे ही लोगों को जोजीवन भर संघर्ष करते रहे, आज का संघर्ष पहले से जुदा है। आज यादें हैं, तन्हाई है, एकाकीपन है और बस कुछपलों की मिठास भी जो उन्हें अपनों को देखकर मिलती है।
सचमुच उनकी दुनिया वीरान है, लेकिन बहुत से ऐसे हैं जिनके अपने उनके पास हैं। हम ऐसे ही बुजुर्गों कीदुनियाको पास से देखेंगे जब वे हंसेंगे, हमें गुदगुदायेंगे और हमारे संग गायेंगे भी। कुछ ऐसी विभूतियों के बारे मेंबातकरेंगे जो बुढ़ापे में भी नौजवान की भांति खड़े हैं। ऐसे ही एक मा. होराम सिंह का हम यहां जिक्र कर रहे हैं।
ये लोग वरिष्ठ नागरिक हैं, उम्रदराज हैं, अनुभवी हैं, जानकार हैं और इन्होंने सिखाया है दूसरों को। ये अध्यापक हैं, डाक्टर हैं, अपने-अपने क्षेत्रा के माहिर। समाज को नये रास्ते पर लेकर गये हैं और उन्हें रास्ता दिखाया है जिन्हेंकहीं कोने में छोड़ दिया गया था। वे जुड़े हैं आपने काम में, संलग्न हैं सेवा-भाव से, शायद इसी सोच के साथ किथोड़ा सा माटी का कर्ज उतार सकें। आइये जानते हैं, मिलते हैं उनसे-
मा. होराम सिंह
ग्राम बल्दाना निवासी मा. होराम सिंह को शिक्षा क्षेत्र में किये उल्लखेनीय योगदान के लिये जुबीलेंट ने सम्मानित किया है। उन्हीं के साथ उनके दो शिष्यों स. श्योराज सिंह तथा मा. कृपाल सिंह को भी सम्मानित किया गया। मा. होराम सिंह के बड़े सुपुत्र वीरेन्द्र सिंह आइ.ए.एस. हैं जो अब सेवानिवृत्त हो चुके। इसी से मास्टर साहब की दीघार्यु का पता चलता है। उनका स्वास्थ्य आजकल के नवयुवकों से बेहतर है। उन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता कि वे इतनी लंबी आयु के हैं।
अपने अध्यापन काल में उन्होंने बहुत परिश्रम तथा लग्न के साथ पढ़ाया। उनके अनेक शिष्य आज भी उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं। वे जहां कहीं भी गये लोगों ने उनका सम्मान किया। वे बहुत ही सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले महानुभाव हैं। उन्हीं की प्रेरणा और शिक्षा का प्रभाव था कि उनके बड़े पुत्र वीरेन्द्र सिंह आइ.ए.एस. बने।
मा. होराम सिंह बहुत ही सादगी से अपने गांव बल्दाना में जीवन व्यतीत कर रहे हैं तथा लंबी आयु के बावजूद कृषि कार्य में अधिकांश समय लगाते हैं।
ग्राम छीतरा निवासी स्व. मुंशी निर्मल सिंह उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं। अध्यापक के रुप में उन्होंने छीतरा के प्राथमिक विद्यालय का कार्यभार ग्रहण किया था। मा. साहब ने केवल छात्र-छात्राओं को ही नहीं बल्कि ग्रामीण लोगों के कार्य व्यवहार में भी सुधार किया। वे हमेशा न्याय का पक्ष लेते हैं। उनके जीवन आदर्शों पर लिखा जाये तो एक बड़ा ग्रंथ तैयार हो सकता है। यहां तो उनके बारे में एक अंश मात्र भी नहीं लिखा गया।
हरमिन्दर सिंह द्वारा
Saturday, May 10, 2008
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हमारे प्रेरणास्रोत | हमारे बुजुर्ग |
...ऐसे थे मुंशी जी ..शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम था मुंशी जी का ...अपने अंतिम दिनों में | तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है? सम्मान के हकदार नेत्र सिंह रामकली जी दादी गौरजां |
>>मेरी बहन नेत्रा >>मैडम मौली | >>गर्मी की छुट्टियां >>खराब समय >>दुलारी मौसी >>लंगूर वाला >>गीता पड़ी बीमार | >>फंदे में बंदर जानवर कितना भी चालाक क्यों न हो, इंसान उसे काबू में कर ही लेता है। रघु ने स्कूल से कहीं एक रस्सी तलाश कर ली. उसने रस्सी का एक फंदा बना लिया |
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सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य गिरीराज सिद्धू ने व्यक्त किया अपना दुख बुढ़ापे का सहारा गरीबदास उन्हीं की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अपने पराये कर देते हैं और थकी हड्डियों को सहारा देने के बजाय उल्टे उनसे सहारे की उम्मीद करते हैं |
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अपने याद आते हैं राजाराम जी घर से दूर रह रहे हैं। उन्होंने कई साल पहले घर को अलविदा कह दिया है। लेकिन अपनों की दूरी अब कहीं न कहीं परेशान करती है, बिल्कुल भीतर से |
दैनिक हिन्दुस्तान और वेबदुनिया में वृद्धग्राम |
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे -Ravish kumar NDTV | इन काँपते हाथों को बस थाम लो! -Ravindra Vyas WEBDUNIA.com |
स्वागत है !
ReplyDeleteअच्छा है हाशिये की आवाज़ें यहाँ गूंजने लगी हैं ...
उम्मीद है आपकी दुनिया की हकीकत और अनुभव समझ पायेंगे ।
सुस्वागतम ,उम्मीद है बुजुर्गो से हमे भी काफ़ी कुछ सीखने समझने को मिलेगा :०
ReplyDeletebahut prashansniya paryas hai ....kammar kaske jute rahiye...
ReplyDeleteइतने अच्छे ब्लॉग की शुरुआत के लिए बधाई और शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteवृद्धों का ब्लाग आरम्भ करने के लिये साधुवाद और बधाई! यह बहुत ही पवित्र विचार है। हमारे वृध माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी उतने ही प्यार और सेवा के अधिकारी हैं जितना उन्होने अपने बच्चों के लिये किया है।
ReplyDeleteखुशी की बात है कि ४५ वर्ष से उपर के लोगों के समग्र हित को ध्यान में रखकर बनायी गयी हिन्दी में एक और साइट उपलब्ध है।
http://45plusindia.com/default.aspx
वाकई इस तरह के लेख की आज सक्त आवश्यकता है। स्वागत है आपका, जल्द नई पोष्ट दें, इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteबहुत उम्दा पहल है. हार्दिक स्वागत है. आपके अनुभवों का लाभ उठायेंगे और मार्गदर्शन भी करते रहें.
ReplyDeleteआपका पोस्ट पढ़कर बरसों पहले पढ़ा गया वागर्थ के वृद्ध विशेषांक की याद आ गई...अच्छी शुरुआत है...बधाई स्वीकार करें...
ReplyDeleteबहुत खूब। बधाई!
ReplyDeleteहरमिन्दर सिंह जी, बहत अच्छा लगा आपने यह ब्लाग प्रारम्भ किया. वृद्धों का अनुभव अगर नौजवानों की राह बने तो परिवार मजबूत होंगे, समाज सशक्त बनेगा, उसमें समरसता आएगी. भारतीय समाज परिवार पर आधारित है. परिवार टूट रहे हैं इस से समाज में टूटन आ रही है. यदि वृद्धों को सम्मान मिलेगा तो सब का भला होगा. एक बार फ़िर वधाई और शुभकामनाएं.
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